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शनिवार, 27 फ़रवरी 2021

गोधरा कांड के 19 साल: श्रद्धालुओं से भरी ट्रेन की बोगी में हुआ था अग्निकांड, गूंजती रही थीं हवा में चीखें

27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन से रवाना हुई साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन में 1000-2000 लोगों की उन्मादी भीड़ ने आग लगा दी। इस भीषण अग्निकांड में 59 लोगों की मौत हो गई थी। 

National 27 feb 2002 gujarat godhra sabarmati express burnt by mob
फाइल फोटो: गोधरा में साबरमती एक्सप्रेस को दंगाइयों ने कर दिया था आग के हवाले

गोधरा कांड: नानावटी मेहता समिति ने 6 साल तक तथ्यों और घटनाओं की जाँच करने के बाद 2014 में अपनी रिपोर्ट सौंपी। रिपोर्ट के अनुसार गोधरा दुर्घटना एक षड्यंत्र था। 

नई दिल्ली: साल के दूसरे महीने का 27वां दिन एक दुखद घटना के साथ इतिहास के पन्नों में दर्ज है। दरअसल 27 फरवरी 2002 को गुजरात के गोधरा स्टेशन से रवाना हुई साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन के कोच एस-6 में उन्मादी भीड़ ने आग लगा दी। इस भीषण अग्निकांड में 59 लोगों की मौत हो गई। ट्रेन में सवार हिंदू तीर्थयात्री अयोध्या से विश्व हिंदू परिषद द्वारा आयोजित पूर्णाहुति महायज्ञ में भाग लेकर वापस लौट रहे थे। 27 फरवरी की सुबह ट्रेन 7:43 बजे गोधरा पहुँची। जैसे ही ट्रेन गोधरा स्टेशन से रवाना होने लगी उसकी चेन खींच दी गई। ट्रेन पर 1000-2000 लोगों की भीड़ ने हमला किया पहले पत्थरबाजी की फिर पेट्रोल डालकर उसमें आग लगा दी। इसमें 27 महिलाओं, 22 पुरुषों और 10 बच्चों की जलने से मृत्यु हो गई।


गुजरात सरकार ने इस घटना की जाँच के लिए गुजरात हाईकोर्ट के न्यायाधीश केजी शाह की एक सदस्यीय समिति गठित की। इसका विरोध विपक्ष व मानवाधिकार संगठनों ने किया तो सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) जीटी नानावटी की अध्यक्षता में समिति का पुनर्गठन किया और न्यायाधीश केजी शाह को इसका अध्यक्ष बनाया गया। न्यायाधीश केजी शाह की 2008 में मृत्यु हो जाने पर गुजरात उच्च न्यायालय ने उनकी जगह सेवानिवृत्त न्यायाधीश अक्षय कुमार मेहता को अप्रैल 2008 में समिति का सदस्य नियुक्त किया। अत: इस समिति को नानावटी मेहता समिति के नाम से जाना गया। इस समिति ने 6 साल तक तथ्यों और घटनाओं की जाँच करने के बाद 2014 में अपनी रिपोर्ट सौंपी।


रिपोर्ट के अनुसार गोधरा दुर्घटना एक षड्यंत्र था। मुख्य षड्यंत्रकारी गोधरा का मौलवी हुसैन हाजी इब्राहिम उमर और ननूमियाँ थे। इन्होंने सिग्नल फालिया एरिया के मुस्लिमों को भड़काकर इस षड्यंत्र को अंजाम दिया। ट्रेन को जलाने के लिए रज्जाक कुरकुर के गेस्ट हाउस पर 140 लीटर पेट्रोल भी एकत्रित किया गया। रिपोर्ट में पेट्रोल/ ज्वलनशील पदार्थ छिड़कने की सत्यता को प्रमाणित करने के लिए फॉरेंसिक लेबोरेट्री के प्रमाणों का भी उल्लेख किया गया।


गुजरात फॉरेंसिक साइंस लेबोरेट्री के अनुसार आग लगने के कारण ज्वलनशील द्रव को कोच के अंदर डाला जाना था और आग लगाना केवल दुर्घटना मात्र नहीं थी। यह सोची समझी साजिश थी जिसको दुर्घटना का नाम दिया। 

आरोपियों के वकील का तर्क था कि रेलवे स्टेशन पर मुस्लिम दुकानदारों से कारसेवकों ने दुर्व्यवहार किया, 7 फरवरी 2002, सुबह करीब 6 बजे साबरमती एक्सप्रेस दाहोद रेलवे स्टेशन पहुंची। इस ट्रेन से हजारों कारसेवक अयोध्या से लौट रहे थे. 

साबरमती एक्सप्रेस के दाहोद पहुंचते ही एक मुस्लिम चायवाला ट्रेन के एक डिब्बे में चढ़ने की कोशिश करता है। उसे चढ़ने से रोका जाता है। इसकी वजह से यात्री और चायवाले के बीच झगड़ा हुआ और और कहा जाता है कि इस घटना के बाद वह चायवाला दाहोद से गोधरा फोन कर देता है. 

दाहोद से करीब डेढ़ घंटे के सफर के बाद साबरमती एक्सप्रेस चार घंटे की देरी से गोधरा स्टेशन पहुंचती है। जब ट्रेन स्टेशन से रवाना होने लगी, तब ट्रेन की इमरजेंसी चेन खींची गई और अचानक से जमा हुई भीड़ ने ट्रेन पर पत्थर फेंकने शुरू कर दिए और कोच नंबर एस-6 में आग लगा दी जिसमें सबसे ज्यादा कार सेवक सवार थे।


परन्तु न्यायालय ने इस तर्क को स्वीकार नहीं किया। न्यायालय का मानना था कि रेलवे स्टेशन के पास स्थित सिग्नल फालिया एरिया के लोगों को यह अफवाह फैलाकर एकत्रित किया गया कि कारसेवक मुस्लिम लड़की का अपहरण कर रहे हैं। पास की मस्जिद से भी लोगों को भड़काने वाले नारे लगाए गए। बाद में एकत्रित भीड़ से ट्रेन रोकने के लिए कहा गया। न्यायालय ने माना कि यह एक सुनियोजित षड्यंत्र था, क्योंकि 5-6 मिनट के अंदर मुस्लिम लोगों को हथियार सहित एकत्रित कर रेलवे स्टेशन और ट्रेन तक लाना बिना पूर्व निर्धारित योजना के संभव नहीं है।


लेकिन प्रोपगेंडा के तहत गोधरा भीष्ण कांड को केवल एक दुर्घटना करार दिया गया। बाद में 68 लोगों के विरुद्ध चार्जशीट फाइल की। विशेष ट्रॉयल कोर्ट ने 2011 में 31 लोगों को दोषी पाया। जिनमे से 11 लोगों को मौत की सजा दी, यह वो लोग थे जिन्होंने गोधरा में ट्रेन जलाने का षड्यंत्र रचा और कोच में जाकर पेट्रोल छिड़का था। और अन्य 20 को  कोर्ट ने आजीवन कारावास की सजा दी। दोषियों ने गुजरात उच्च न्यायालय में याचिका दायर की। उच्च न्यायालय ने 11 मौत की सजा दोषियों की भी सजा बदल कर आजीवन कारावास कर दी।

गोधरा की घटना के बाद हुए दंगों में, तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी को भी आरोपी बनाने के लिए एक याचिका दायर की गई थी। लेकिन SIT और हाईकोर्ट ने मोदी को क्लीन चिट दे दी।





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