'हमें हिंदू महिलाएँ चाहिए, लेकिन उनके मर्दों के बग़ैर' - जब भारतीय महिलाओं को गुलाम बना कर कश्मीर को Pak बनाना चाहते थे आतंकी
'The Kashmir Files' में फ़िल्म निर्माता विवेक अग्निहोत्री ने कहानी नहीं बल्कि कश्मीरी हिंदुओं की उस सच्चाई को दिखाया है जिसको इतिहास ने हमेशा दबा के रखा। यह फिल्म 1990 के दशक की कश्मीर घाटी को दर्शाता है। कश्मीरी पंडितों पर आतंकवादियों के अत्याचारों को दिखाता है कि कैसे आतंकवादियों ने कश्मीरी-हिंदुओं को उनकी जमीन से बेदखल किया। बेरहमी से मार दिए गए। उनकी महिलाओं से बलात्कार और बच्चों पर अत्याचार किए गए। कैसे कश्मीरी जनता देश की सरकार, स्थानीय प्रशासन, पुलिस और मीडिया जैसी ताकतों के बावजूद अपने ही देश में शरणार्थी बनकर रह गई और आज तक उन्हें न्याय नहीं मिला। ये फ़िल्म नहीं बल्कि कश्मीरी हिंदुओं के नरसंहार और पलायन का जीता जागता दस्तावेज़ है। फिल्म में दिखाए गए घटनाओं के दृश्य सीन दर सीन सच्चाई बयां करते हैं। और हमारे सामने कई गंभीर सवाल खड़े करता है।
टूटे हुए लोग बोलते नहीं उन्हें सुना जाता है…#TheKashmirFiles#RightToJustice pic.twitter.com/qGOGhAhbZ8
— Vivek Ranjan Agnihotri (@vivekagnihotri) March 13, 2022
90 के दशक में कश्मीर घाटी में गूँजने वाले उन नारो में से एक नारा ये था “असि गछि पाकिस्तान, बटव रोअस त बटनेव सान” – मतलब “हमें पाकिस्तान चाहिए और हिंदू महिलाएँ भी लेकिन अपने मर्दों के बग़ैर।” यह वह दौर था जब रोजाना घाटी की मस्जिदों से हिंदुओं और अन्य गैर-मुसलमानों के खिलाफ मौत का फरमान जारी किया जाता था। 16-17 साल के कश्मीरी मुस्लिम बड़े जोश से हथियार उठा रहे थे।
आज़ादी और जेहाद के नाम पर हिंदुओं और उनके बच्चों का कत्ल हो रहा था। रोज़ाना महिलाओं का रोज़ बलात्कार हो रहा था। वहां की प्रशासन हाथ पर हाथ रख बैठे हुए थे, और हुकूमत तो आंतकवादी और अलगाववादी चला रहे थे। शायद उस समय की सरकार ने अपनी आँखों पर पट्टी बाँध रखी थी।
कश्मीरी पंडितों के सबसे बड़े नेता माने जाने वाले पंडित टीका लाल टपलू को 14 सितम्बर, 1989 को श्रीनगर में सरेआम गोलियों से छलनी कर मार डाला। सिर्फ इसलिए क्यूंकि वो एक हिन्दू थे। यही उनका दोष था। हत्या से ठीक 2 दिन पहले उनके घर पर भी हमला किया गया था। यह घाटी के हिंदुओं के बरबादी की शुरुआत थी। इसके बाद मानो हत्याओं का सिलसिला शुरू हो गया। इसके बाद 4 जनवरी 1990 को श्रीनगर के एक उर्दू अखबार में हिजबुल मुजाहिदीन का एक बयान छपा जिसमें हिंदुओं को घाटी छोड़ने को कहा गया।
सार्वजनिक रूप से हिंदुओं के खिलाफ बहुत भड़काऊ भाषण दिए जा रहे थे। पूरे कश्मीर घाटी में हिंदुओं के खिलाफ भड़काऊ कैसेट तक बांटे गए। हिंदुओं के ख़िलाफ़ तबीयत से ज़हर उगला जा रहा था। घाटी में हर तरफ दहशत भरा माहौल था। 18 जनवरी, 1990 को उनके नेता के इस्तीफ़ा देते ही रातों-रात हिंदुओं के घरों पर धमकी भरे पोस्टर चिपका दिए गए। हिंदुओं की पहचान के लिए उनके घरों पर लाल घेरे बनाए गए। साथ ही घर की दीवारों पर लिख दिया गया – “कश्मीर छोड़ दो, नहीं तो मार दिए जाओगे।”
अगले ही दिन सैकड़ों कश्मीरी मुस्लिम पाकिस्तान ज़िंदाबाद चिल्लाते हुए हाथों में AK-47 ले के सड़कों पर उतर आए। ये 19 जनवरी, 1990 का दिन था, जिस दिन कश्मीर के इतिहास का सबसे काला अध्याय लिखा गया। दिन-दहाड़े हिन्दुओं को उनके घरों में घुसकर मार डाला गया।। महिलाओं का बलात्कार किया गया। छोटे मासूम बच्चों तक को नहीं छोड़ा गया। यह नरसंहार केवल कश्मीर तक ही सीमित नहीं था, श्रीनगर में हिन्दुओं को भी उनके घरों में घुसकर मार डाला गया था। सिर्फ एक रात में ही 60,000 से ज़्यादा हिन्दुओं ने पलायन किया। माना जाता है कि वास्तविक आँकडे इससे कहीं ज़्यादा हैं।
कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के आंकड़ों के अनुसार जनवरी 1990 में कश्मीर में हिन्दुओं के 75,343 परिवार थे। लगभग 70,000 से ज़्यादा परिवार इस्लामी आतंकवाद की वजह से घाटी से 1992 तक पलायन कर गए। फिलहाल कश्मीर में करीब 800 हिंदू परिवार ही बचे हैं। 1941 में कश्मीरी पंडितों की संख्या लगभग दस लाख आसपास थी, जो कुल जनसंख्या का 15 प्रतिशत थी। 1991 में यह संख्या घटकर 9000 यानि सिर्फ 0.1 प्रतिशत रह जाती है। ये घटनाएं और आंकड़े यह बताने के लिए काफी हैं कि कश्मीर में इस्लामिक कट्टरपंथियों ने सुनियोजित तरीके से हिन्दुओं का कत्लेआम किया है।
आखिर क्या वजह थी कि उस समय पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद अपने चरम पर था? जम्मू-कश्मीर और केंद्र की सरकारें घाटी में दिनदहाड़े हिन्दुओं की हत्याओं को चुपचाप क्यों देखती रहीं? मस्जिदों से अज़ान की जगह हिन्दुओं को मारने के आदेश क्यों सुनाई दे रहे थे? आखिर घाटी के कश्मीरी मुसलमानों को जिहाद और आजादी के नाम पर एके-47 जैसे अत्याधुनिक हथियार इतनी आसानी से कैसे मिल रहे थे? टीका लाल टपलु समेत सैंकड़ों हिंदुओं को मौत के घाट उतार दिया गया, पर उनके क़ातिलों पर मुक़दमे नहीं चलाए गए? इंसाफ़ की इस लड़ाई को लड़ते हुए 32 साल बीत गए आखिर क्यों कभी किसी सरकार ने कश्मीरी हिन्दुओं की पुनर्स्थापना के लिए कुछ नहीं किया?
आज भी लाखों कश्मीरी हिंदू अपने घरों में जाने का इंतज़ार कर रहे हैं और सैंकड़ों इसी इंतज़ार में इस दुनिया को अलविदा कह चुके हैं।
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