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बुधवार, 13 अक्टूबर 2021

बाँस को चिता में भी जलाना मना है लेकिन अगरबत्ती में जलाकर रोज करते हैं पाप

It is forbidden to burn bamboo in the pyre, but by burning it in incense sticks, we commit sin everyday


बाँस को चिता में भी जलाना मना है लेकिन अगरबत्ती में जलाकर रोज पाप करते हैं


शास्त्रों में बाँस जलाने को पूरी तरह मना किया गया है किसी भी हवन और पूजन में इसको नही जलाया जाता है। अर्थी बनाने में प्रयोग होने के बावजूद इसको चिता में भी नही जलाया जाता है। 


बात जब भी भारतीय सँस्कृति की आती है तो उसके हर एक विधान में कुछ ना कुछ वैज्ञानिक कारण छिपा ही होता है बस उसको समझने की बुद्धि होनी चाहिये । ऐसा ही एक विधान है कि भारतीय सँस्कृति में बाँस को जलाना मना किया गया है । यहॉ तक कि अर्थी में प्रयोग होने के बावजूद चिता तक में बाँस को जलाने की मनाही होती है । तो क्या है इसका वैज्ञानिक कारण ? चलिये जानते हैं । आखिर बाँस को जलाने से क्या दिक्कत है और क्यों इसको जलाने से लोगों को बचाने के लिए धर्म से जोड़कर मना किया गया है । बहुत छोटी सी पोस्ट है लेकिन आपको बहुत कुछ सोचने पर मजबूर कर देगी । आगे की स्लाइड में हम आपको बता रहे हैं कि बाँस को जलाने के लिए क्यों मना किया गया है और उसके बाद हम आपको बतायेंगें कि बाँस को ना जलाने का वैज्ञानिक कारण क्या है । अच्छी और अनूठी जानकारी सिर्फ आपके लिए ।


बाँस जलाना क्यों मना है

शास्त्रों में बाँस जलाने को पूरी तरह मना किया गया है किसी भी हवन और पूजन में इसको नही जलाया जाता है । अर्थी बनाने में प्रयोग होने के बावजूद इसको चिता में भी नही जलाया जाता है। कहा जाता है कि बाँस जलाने से पितृ दोष लगता है और शरीर में गम्भीर रोग होते हैं जो पितृ दोष के कारण ही अगली पीढ़ी में भी आते हैं । इसका क्या कारण हो सकता है और क्या है इसके पीछे छिपा वैज्ञानिक कारण। आधुनिक अनुसंधान बताते हैं कि बाँस में लेड और हैवी मैटल बहुत ज्यादा मात्रा में पाये जाते हैं । जब भी बाँस को जलाया जाता है तो उससे बहुत ज्यादा लैड ऑक्साईड बनता है जो सीधे हवा में घुलता है और हवा की गति के कारण दूर दूर तक फैलता है जो कि आबादी के बड़े हिस्से को साँस के साथ शरीर में पहुँच कर दिमाग और नसों से सम्बंधित बीमारियों का रोगी बनाता है । शायद इसलिये ही माना जाता है कि बाँस जलाने सए पितृ दोष लगता है जिससे कि लोग बाँस को ना जलायें और इस महामारी से बचे रह सकें ।

बाँस प्रयोग होता है अगरबत्ती में

आजकल पूजन के लिये अपने ईष्ट की आराधना करने के लिये हम दीपक और धूपबत्ती के स्थान पर अगरबत्ती का प्रयोग ज्यादा करने लगे हैं । आपको मालूम होना चाहिये कि अगरबत्ती में जो लकड़ी लगी होती है उसको बाँस को छिलकर ही तैयार करा जाता है क्योंकि यह बहुत सस्ता पड़ता है । जब यह अगरबत्ती घर और बाहर जलायी जाती है तो इसके गम्भीर परिणाम उन लोगों को भी झेलने पड़ते हैं जिन्होने बाँस को कभी हाथ भी नही लगाया । इसके अलावा अगरबत्ती को सुगन्धित बनाने के लिये और उस सुगन्ध को दूर दूर तक फैलाने के लिये उसमें फेथलेट नामक जहरीला रसायन मिलाया जाता है जो कि साँस के साथ हमारे शरीर में जाकर हमको बहुत बीमार बनाता है और कैन्सर जैसे जानलेवा रोग का कारण बनता है । शायद यही कारण है कि हमारे शास्त्रों में कही पर भी अगरबत्ती के प्रयोग का उल्लेख नही मिलता है सिर्फ धूप ( गुग्गुलु और लोबान आदि ) को ही जलाने का निर्देश मिलता है ।





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