राजा परीक्षित और कलयुग का आगमन - E-Newz Hindi

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बुधवार, 10 फ़रवरी 2021

राजा परीक्षित और कलयुग का आगमन

The King Parikshit arrival of kalyuga
The King Parikshit and arrival of kalyug


परीक्षित अर्जुन के पोते तथा अभिमन्यु और उत्तरा के पुत्र थे। जब वे गर्भ में थे तब अश्वत्थामा ने बह्रमास्त्र से परीक्षित को मरने का प्रयास किया था। ब्रम्हास्त्र के प्रभाव से वे मृत पैदा हुए। बता दें ब्रम्हास्त्र का सम्बन्ध भगवान ब्रह्मा से है इसकी रचना भगवान ब्रह्मा ने की थी। और ये सब कुछ खत्म कर देने की क्षमता रखता है। ब्रह्मास्त्र के उपयोग से पूरी सृष्टि को एक क्षण में समाप्त किया जा सकता है। इस घटना के बाद, भगवान श्री कृष्ण ने अपने योग बल से उत्तरा के मृत पुत्र को जीवित कर दिया था।

    राजा परीक्षित का नाम कैसे पड़ा परीक्षित ?

    माना  जाता है कि अपनी मां के कोख में ही परीक्षित को भगवान श्रीकृष्ण के दर्शन हो गए थे।  जिसके बाद जिस किसी से भी मिलते थे तो उनमे भगवान श्री कृष्ण की छवि ढूंढ़ने की कोशिश करते थे। यह उनके लिए परीक्षा जैसी अवस्था होती थी इसी कारण उनका नाम परीक्षित पड़ा। इसके आलावा महाभारत के अनुसार, कुरु वंश के जन्म के बाद उन्हें 'परीक्षित' कहा जाता था। उत्तर के राजकुमार की बेटी इरावती से परीक्षित का विवाह हुआ। परीक्षित और इरावती के चार बेटे हुए जिनमें से एक जनमेजय था।


    कहा जाता है महाभारत युद्ध की समाप्ति के कुछ ही समय बाद, युधिष्ठिर पांडव आदि जब संसार के मोह माया से भली भाँति उदासीन हो चुके थे, तब स्वर्ग को प्रस्थान करने का मन बनाया जल्द ही वे परीक्षित को हस्तिनापुर के सिंहासन पर बिठा कर द्रौपदी के साथ निकल गए। परीक्षित जब राज सिंहासन पर बैठे उस वक्त तक भगवान कृष्ण परमधाम सिधार चुके थे। और युधिष्ठिर ने 37 वर्षों तक हि राज्य में शासन किया था। 


    जब पांडव स्वर्ग की ओर प्रस्थान कर गए उसके बाद परीक्षित ने कार्यभार और शासन संभाल लिया।अपने राज्य पाठ के दौरान गंगातट पर उन्होंने तीन अश्वमेघ यज्ञ किए जिनमें अंतिम बार देवताओं ने प्रत्यक्ष आकर बलि ग्रहण किया था। मुख्य बात यह है कि द्वापर युग का अंत और कलियुग की शुरुआत इन्ही के राज्यकाल में मानी जाती है।


    कलयुग का आगमन कैसे हुआ 

    एक दिन राजा परीक्षित ने सुना कि उनके राज्य में कलियुग ने प्रवेश कर लिया है और वह अधिकार प्राप्त करने का मौका तलाश रहा है। वह उसको अपने राज्य से बाहर निकालने के लिये ढूँढ़ने निकले पड़े। इन्होंने देखा कि एक अनाथ गाय और एक बैल कतार में खड़े हैं और एक व्यक्ति जिसका "वेष भूषण" और "ठाट-बाट" एक राजा के जैसा है वो हाथ में डंडा लिए बैल और गाय को पीट रहा है। बैल का केवल एक पैर था। क्रोधित होकर परीक्षित ने उस व्यक्ति से पूछा ‘तू कौन अधर्मी है, जो निरीह गाय और बैल पर अत्याचार कर रहा है


    राजा परीक्षित को बैल, गाय और व्यक्ति तीनों ने अपना अपना परिचय दिया। गाय पृथ्वी थी, बैल धर्म था और व्यक्ति कलयुग था। धर्म रूपी बैल के तीन पैर थे "सत्य, तप और दयारूपी" जिनको कलियुग ने मारकर तोड़ डाला था। केवल एक पैर दान बच गया था जिसके सहारे बैल भाग रहा था, कलियुग उसे भी तोड़ने के लिए बराबर उसका पीछा कर रहा था। यह बात सुनकर परीक्षित कलियुग पर गुस्सा होकर बोले "तेरा कृत्य ही ऐसा है कि तुझे मृत्युदंड मिलना चाहिए।" और कलियुग का वध करने के लिए अपनी तलवार निकाल ली। इस पर कलियुग राजा पीक्षित के पैरों में गिर कर बोलै "राजा अपनी शरण में आए हुए व्यक्ति की हत्या नहीं करते" तो उन्होंने कलियुग को जीवन दान दिया।


    राजा परीक्षित ने दिए कलयुग को 5 स्थान 

    कलियुग को जीवनदान देने के बाद राजा परीक्षित ने कहा "कलियुग, तू ही पाप, झूठ,चोरी, कपट और दरिद्रता का करण है" मेरे राज्य की सीमाओं से दूर निकल जा और कभी लौटकर मत आना। कलियुग गिड़गिड़ाते हुए विनती करने लगा "महाराज आपका राज्य तो संपूर्ण पृथ्वी पर है। मैं आपकी शरण में आया हूं तो मुझे रहने का स्थान भी आप ही दीजिए।


    कलियुग की विनती स्वीकार करते हुए राजा परीक्षित ने उसे रहने के लिए जुआ, मदिरा, परस्त्रीगमन और हिंसा जैसी चार जगह दे दीं। इस पर कलियुग ने विनती की- राजन! ये चारों जगह मेरे लिए पर्याप्त नहीं है, आप एक और स्थान मुझे दीजिए। इस पर राजा ने उसे सोने में रहने की अनुमति दे दी और चले गये। कलियुग को स्थान देते समय राजा यह भूल गए कि उन्होंने सिर पर सोने का ही मुकुट पहना है।


    राजा से स्थान मिलते ही कलियुग तब तो वहां से चला गया। लेकिन थोड़ी देर बाद सूक्ष्म रूप में वापस आया और राजा के मुकुट में घुस गया। कलियुग बराबर इस ताक में था कि किसी प्रकार परीक्षित का खटका रास्ते से हटाए और पूरा राज करे, क्योंकि परीक्षित के रहते वो पृथ्वी पर राज नहीं कर सकता था।  और न ही जुआ, स्त्री, मद्य, हिंसा और सोना के आलावा किसी और स्थान में रह सकता था। राजा परीक्षित के रहते तो बिलकुल नहीं। 


    ऋषि श्रृंगी द्वारा राजा परीक्षित को श्राप 

    इस घटना के कुछ समय बाद राजा परीक्षित एक दिन शिकार करने निकले। घोड़े में बैठे राजा परीक्षित को एक हिरन दिखाई दिया, हिरन का शिकार करने के लिए राजा ने उसका पीछा किया। किन्तु बहुत दूर तक पीछा करने पर भी वह नहीं मिला। वे थक गये, और थकावट के कारण उन्हें प्यास लग गई थी। मार्ग में आश्रम था जो एक वृद्ध ऋृषि शमीक का था। और ऋृषि तपस्या में लीन थे। राजा ने उनसे पूछा कि बताओ, हिरन किधर गया है।  मुनि ध्यान में थे इसलिये राजा की जिज्ञासा का कुछ उत्तर न दे सके।


    कलियुग सिर पर सवार था ही, कलियुग के बुरे प्रभाव के कारण उनकी मति भ्रष्ट हो गई। और थके, प्यासे राजा ऋषि के इस इस व्यवहार को बर्दास्त नहीं कर पाए और क्रोध में आ गए। परिक्षित ने निश्चय कर लिया कि ऋषि ने अपने घमंड के मारे हमारी बात का जवाब नही दिया है और इस अपराध का उन्हें कुछ दंड मिलना चाहिए। पास में एक मरा हुआ सांप पड़ा था। राजा ने उसे कमान की नोक से उठा लिया कर तपस्या में लीन ऋृषि के गले के चारों तरफ लपेट दिया और वहां से चले गए। 


    ऋृषि शमीक का कोपशील श्रृंगी नाम का एक महातेजस्वी पुत्र था। वह किसी काम से बाहर गया था। लौटते समय रास्ते में उसने सुना कि किसी राजा ने उसके पिता के गले में मरे हुए सांप की माला पहना गया है। कोपशील श्रृंगी ने पिता के इस अपमान की बात सुनते ही हाथ में जल लेकर श्राप दिया कि जिस पापी ने मेरे पिता के गले में मृत सर्प की माला पहनायी है, आज से सात दिन के भीतर तक्षक नाम के सर्प के काटने से उसकी मृत्यु हो जाएगी। आश्रम में पहुँचकर, श्रृंगी ने पिता को अपमान करने वाले को उग्र श्राप देने के बारे में बताया।


    ऋषि को पुत्र के द्वारा राजा को श्राप देने की बात सुन कर बहुत दुःख हुआ और उन्होंने परीक्षित को श्राप की बात बताने के लिए एक शिष्य को भेज दिया ताकि वे सतर्क हो जाएँ। श्राप की बात जान कर राजा परीक्षित बहुत दुखी हुआ और ऋषि के शाप को अटल समझकर परीक्षित ने राजकाज त्याग कर बेटे जनमेजय को सौंप दिया और एक खंभे नुमा ऊंचें महल पर सुरक्षित होकर रहने लगे।


    तक्षक सर्प द्वारा राजा परीक्षित की मित्यु 

    देवी भागवत में भी लिखा हैं परीक्षित ने तक्षक सर्प से अपनी रक्षा करने के लिये एक सात मंजिल ऊँचा मकान बनवाया और उसके चारों ओर अच्छे अच्छे सर्प मंत्र ज्ञान सर्पो के मंत्रो का ज्ञान रखने वालो को और सर्प पकड़ने वालो को तैनात कर दिया। तक्षक को जब यह मालूम हुआ तब वह घबराया। अंत में परीक्षित तक पहुँचने को उसे एक उपाय सूझा। उसने एक अपने हि जाती के एक सर्प को योगी का रूप देकर उसके हाथ में कुछ फल दे दिए और एक फल में अति सूक्ष्म (छोटे) कीड़े का रूप में खुद जा बैठा। 


    तक्षक के आदेश के अनुसार, योगी ने तक्षक को सुरक्षित परीक्षित के वास स्थान तक पहुंचा दिया। पहरेदारों ने योगी को अंदर जाने से रोका पर राजा को खबर होने पर की कोई तपस्वी आया है तो उन्होंने उसे अपने पास बुलवा लिया और फल लेकर उसे बिदा कर दिया। एक तपस्वी मेरे लिये यह फल दे गया है, अतः इसके खाने से अवश्य उपकार होगा, यह सोचकर उन्होंने फल को अपने खाने के लिये काटा। उसमें से एक छोटा कीड़ा निकला जिसका रंग पीले भूरे रंग का और आँखें काली थीं।


    परीक्षित ने मंत्रियों से कहा "सूर्य अस्त हो रहा है, अब तक्षक सर्प से मुझे कोई भय नहीं। लेकिन ब्राह्मण के अभिशाप का मान रखना चाहिए।" इसलिये इस कीड़ी से डसने की विधि पूरी करा लेता हूँ। यह कहते हुए, उन्होंने कीड़े को गले से लगा लिया। जैसे ही परीक्षित  के गले से स्पर्श होते ही, वह छोटा कीड़ा एक भयंकर सांप बन गया। तक्षक ने उन्हें डस लिया और विष की भयंकर ज्वाला से उनका शरीर भस्म हो गया। 


    परीक्षित के मृत्यु के बाद कलयुग ने सम्पूर्ण पृथ्वी को अपने चपेट में ले लिया। इस समय परीक्षित की आयु 69 वर्ष की थी। पिता की मृत्यु का बदला लेने के लिए जनमेजय ने सर्पसत्र यग किया जिसमें पूरी दुनिया के सर्पो को मंत्र द्वारा खींच लिया गया और यज्ञ की अग्नि में उनकी आहुति होने लगी। डरा हुआ तक्षक इंद्र के सिंहासन से लिपट गया, आस्तिक ऋषि के समझाने पर जन्मेजय ने अपना यज्ञ रोका। परीक्षित की मृत्यु के बाद, फिर कलियुग की रोक टोक करनेवाला कोई न रहा और वह उसी दिन से मायावी रूप से शासन करने लगा। राजा परीक्षित के बाद पृथ्वी पर ऐसा कोई समर्थ राजा नहीं बचा, जो कलियुग को रोक सके


    इनके अलावा, 'परीक्षित' नाम के चार अन्य राजा और हुए हैं, जिनमें से तीन कुरुवंशी और एक इक्ष्वाकुवंशी थे। तीनो कुरुवंशीय राजाओं में प्रथम वैदिककालीन राजा थे।

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