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गुरुवार, 5 मई 2022

Talaq-e-Hasan: क्या है तलाक-ए-हसन जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई मुस्लिम महिला, जानें तीन तलाक से कितना अलग

तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत के बाद अब तलाक-ए-हसन को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर ‘तलाक-ए-हसन’ और ‘एकतरफा न्यायेतर तलाक’ के अन्य सभी रूपों को अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने की गुहार लगाई गई है।  जानते हैं कि आखिर क्या है तलाक-ए-हसन और यह तीन तलाक से कितना अलग है।

Talaq-e-Hasan: क्या है तलाक-ए-हसन जिसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंच गई मुस्लिम महिला, जानें तीन तलाक से कितना अलग

Talaq-e-Hasan: तीन तलाक यानी तलाक-ए-बिद्दत के बाद अब तलाक-ए-हसन को लेकर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा है। सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर कर ‘तलाक-ए-हसन’ और ‘एकतरफा न्यायेतर तलाक’ के अन्य सभी रूपों को अमान्य और असंवैधानिक घोषित करने की गुहार लगाई गई है। गाजियाबाद की रहने वाली महिला बेनजीर हिना की तरफ से दायर की गई याचिका में केन्द्र को सभी नागरिकों के लिए तलाक के समान आधार और प्रक्रिया के लिए दिशानिर्देश तैयार करने का निर्देश देने का अनुरोध भी किया गया है। सुप्रीम कोर्ट की तरफ से पहले ही तीन तलाक को अपराध घोषित किया जा चुका है। शीर्ष अदालत ने 22 अगस्त 2017 को केवल तीन तलाक बोल कर शादी तोड़ने को असंवैधानिक बताया था। जानते हैं कि आखिर क्या है तलाक-ए-हसन और यह तीन तलाक से कितना अलग है।

तलाक-ए-अहसन: तीन माह के भीतर लिया जाता है तलाक
इस्लाम में तलाक देने के तीन तरीकों का जिक्र प्रमुख रूप से होता है। इसमें तलाक ए अहसन, तलाक-ए-हसन और तलाक-ए-बिद्दत शामिल है। तलाक-ए-अहसन में तीन महीने के भीतर तलाक दिया जाता है। इसमें तीन बार तलाक बोला जाना जरूरी नहीं है। इसमें एक बार तलाक कहने के बाद पति-पत्नी एक ही छत के नीचे तीन महीने तक रहते हैं। तीन महीने के अंदर अगर दोनों में सहमति बन जाती है तो तलाक नहीं होता है। इसे अन्य रूप में कहें तो पति चाहे तो तीन महीने के भीतर तलाक वापस ले सकता है। सहमति नहीं होने की स्थिति में महिला का तलाक हो जाता है। हालांकि, पति-पत्नी चाहें तो दोबारा निकाह कर सकते हैं।


तलाक-ए-हसन: तीन माह तक हर माह एक-एक बार कहा जाता है 'तलाक'
‘तलाक-ए-हसन’ में, तीन महीने की अवधि में हर महीने में एक बार ‘तलाक’ कहा जाता है। तीसरे महीने में तीसरी बार ‘तलाक’ कहने के बाद तलाक को औपचारिक रूप दिया जाता है। तीसरी बार तलाक कहने से पहले तक शादी पूरी तरह से लागू रहती है लेकिन तीसरी बार तलाक कहते ही शादी तुरंत खत्म हो जाती है। इस तलाक के बाद भी पति-पत्नी दोबारा निकाह कर सकते हैं। हालांकि, पत्नी को हलाला से गुजरना पड़ता है। हलाला से आशय महिला को दूसरे शख्स से शादी के बाद उससे तलाक लेना पड़ता है।

तलाक-ए-बिद्दत: कई उलेमाओं ने भी माना यह कुरान के मुताबिक नहीं
तीन तलाक या तलाक-ए-बिद्दत में पति किसी भी जगह, किसी भी समय, फोन पर या लिखकर पत्नी को तलाक दे सकता है। इसके बाद शादी तुरंत खत्म हो जाती है। इसमें एक बार तीन दफा तलाक कहने के बाद वापस नहीं लिया जा सकता है। इस प्रक्रिया में भी तलाकशुदा पति-पत्नी दोबारा शादी कर सकते हैं। हालांकि, उसके लिए हलाला की प्रक्रिया को अपनाया जाता है। तलाक लेने और देने के अन्य तरीके भी इस्लाम में मौजूद हैं। तलाक-ए-बिद्दत की व्यवस्था को लेकर अधिकतर मुस्लिम उलेमाओं का भी मानना था कि यह कुरान के मुताबिक नहीं है।

तीन तलाक को असंवैधानिक करार दे चुका है सुप्रीम कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट पहले ही तलाक-ए-बिद्दत या ट्रिपल तलाक, तीन बार कहकर, लिखकर, एसएमएस या वॉट्सएप के जरिए तलाक देने को गैरकानूनी बता चुका है। 1 अगस्त 2019 के बाद ऐसा करना गैर जमानती अपराध है। इसके तहत 3 साल की जेल हो सकती है। इसके अंतर्गत पीड़ित अपने और नाबालिग बच्चे के लिए गुजारा भत्ता की मांग कर सकती है। 


संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 का उल्लंघन
सुप्रीम कोर्ट में तलाक-ए-हसन को लेकर दायर याचिका में कहा गया है कि तलाक-ए-हसन और न्यायेतर तलाक के अन्य रूपों को असंवैधानिक करार दिया जाए। याचिकाकर्ता के वकील एडवोकेट अश्विनी कुमार दुबे के जरिये याचिका में कहा गया है, ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ (शरीयत) एप्लीकेशन एक्ट, 1937, एक गलत धारणा व्यक्त करता है कि कानून तलाक-ए-हसन और एकतरफा न्यायेतर तलाक के अन्य सभी रूपों को प्रतिबंधित करता है। यह विवाहित मुस्लिम महिलाओं के मौलिक अधिकारों के लिए बेहद हानिकारक है। साथ ही भारत के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 21 और 25 और नागरिक तथा मानवाधिकारों पर अंतरराष्ट्रीय नियमों (कन्वेंशन) का उल्लंघन करता है।


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