राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा, ‘‘चुनाव एक स्पर्धा है और परिणाम में हार या जीत होना स्वभाविक है । उसको जनता का दिया न्याय निर्णय मानकर परस्पर सहयोग एवं विश्वास से सामाजिक जीवन चलते रहना परिपक्व लोकतंत्र की पहचान है।’’
मुख्य बातें:
- गुजरात के कर्णावती में आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक हुई
- सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले ने वर्ष 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट पेश की
नयी दिल्ली: राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने चुनावी हार या जीत को ‘जनता का दिया न्याय निर्णय’ बताया और कहा कि परस्पर सहयोग से सामाजिक जीवन का परिचालन परिपक्व लोकतंत्र की पहचान है और प्रशासनिक तंत्र के दुरूपयोग से विद्वेष एवं हिंसा को खुली छूट देकर राजनीतिक विरोधियों को नष्ट करने का प्रयास भविष्य के लिये महंगा पड़ेगा। गुजरात के कर्णावती में आरएसएस की अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की बैठक में सरकार्यवाह दत्तात्रेय होसबाले द्वारा पेश वर्ष 2021-22 की वार्षिक रिपोर्ट में यह बात कही गई है।
रिपोर्ट में आरएसएस ने खास तौर पर पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद कई स्थानों पर हुए दंगे एवं हिंसा और उसके कारण उत्पन्न वातावरण का जिक्र किया है। संघ ने कहा कि यदि समाज में हिंसा, भय, द्वेष, कानून का उल्लंघन व्याप्त हो गया तो न केवल अशांति और अस्थिरता की स्थिति रहेगी बल्कि लोकतंत्र, परस्पर विश्वास आदि भी नष्ट होगा।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने कहा, ‘‘चुनाव एक स्पर्धा है और परिणाम में हार या जीत होना स्वभाविक है । उसको जनता का दिया न्याय निर्णय मानकर परस्पर सहयोग एवं विश्वास से सामाजिक जीवन चलते रहना परिपक्व लोकतंत्र की पहचान है।’’ संघ ने कहा, ‘‘ परंतु प्रशासनिक तंत्र का दुरुपयोग करते हुए विद्वेष व हिंसा को खुली छूट देकर राजनीतिक विरोधियों को नष्ट करने का प्रयास भविष्य के लिए महंगा पड़ेगा।’’ रिपोर्ट में कहा गया है कि एक राज्य के नागरिक को अपनी सुरक्षा के लिए पड़ोसी राज्य के अभय कवच में जाकर रहना पड़े, यह प्रशासन की विफलता मात्र नहीं बल्कि लोकतंत्र एवं संविधान की अवहेलना भी है।
आरएसएस ने मजहबी कट्टरता को गंभीर चुनौती बताते हुए कहा कि देश में बढ़ती मजहबी कट्टरता ने विकराल रूप में अनेक स्थानों पर पुनः सिर उठाया है तथा कई क्षेत्रों में इसका हमें उदाहरण भी देखने को मिल रहा है। रिपोर्ट में संघ ने कहा कि मजहबी उन्माद को प्रकट करने वाले कार्यक्रम, रैलियां एवं प्रदर्शन संविधान और धार्मिक स्वतंत्रता की आड़ में सामाजिक अनुशासन और परंपरा का उल्लंघन है। संघ ने कहा कि छोटे-छोटे कारणों को भड़का कर हिंसा के लिए उत्तेजित करना, अवैध गतिविधियों को बढ़ावा देना जैसे कृत्यों की श्रृंखला बढ़ती जा रही है, इसके सरकारी तंत्र में प्रवेश करने की व्यापक योजना दिखाई देती है तथा इन सब के पीछे एक दीर्घकालीन लक्ष्य का गहरा षड्यंत्र काम कर रहा है।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘‘कुछ प्रदेशों के विभिन्न भागों में योजनाबद्ध रूप से हो रहे हिंदुओं के मतांतरण की जानकारियां भी सामने आ रही हैं। हिन्दू समाज कुछ हद तक जागृत होकर सक्रिय हुआ है। इस दिशा में अधिक योजनाबद्ध तरीके से संयुक्त एवं समन्वित प्रयास करना आवश्यक प्रतीत होता है।’’ इसमें दावा किया गया है कि देश में बढ़ते विभेदकारी तत्वों की चुनौती गंभीर होती जा रही है तथा हिंदू समाज में ही कई प्रकार के भेदभाव को हवा देकर समाज को दुर्बल करने के प्रयास में हो रहे हैं।
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